स्वैच्छिक शिक्षक मंच द्वारा चम्बा में काव्य गोष्ठी का आयोजन, सरस्वती वंदना से किया गया शुभारंभ
स्वैच्छिक शिक्षक मंच द्वारा चम्बा में काव्य गोष्ठी का आयोजन, सरस्वती वंदना से किया गया शुभारंभ
चंबा/गजा, डीपी उनियाल: अजीज प्रेम जी फाउंडेशन के सहयोग से स्वैच्छिक शिक्षक मंच द्वारा चम्बा में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें जनपद के विभिन्न क्षेत्रों से कवियों...
समुद्र मंथन में क्या-क्या निकला तथा उनसे जुड़ा जीवन प्रबन्धन क्या था?
समुद्र मंथन में क्या-क्या निकला?
समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में छिपा जीवन प्रबन्धन। (जीने का सूत्र या शैली
समुद्र मंथन में क्या-क्या निकला तथा उनसे जुड़ा जीवन प्रबन्धन क्या था? समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में छिपा जीवन प्रबन्धन। (जीने का सूत्र...
गुरु श्री माणिकनाथ नायक!
गुरु श्री माणिकनाथ नायक!
@कवि: सो.ला.सकलानी 'निशांत'
गुरु श्री माणिकनाथ नायक! हरित वन्य क्षेत्र पावन, श्री गुरु माणिकनाथ नायक,
ग्राम कोटी मगरों पल्यूनी, गांव सुंदर शुचित साधक।
अमृत नीरा स्वच्छ सरिता, सर सब्ज भूपटल मादक।
नव उदय जवाहर शिक्षा निकेतन, भव्य दृश्य भावक।
वन्य क्षेत्र पावन श्री माणिक नाथ नायक-----------
बसंत वर्षा...
कविता: देखो! वर्षा कहां चली गई!
कविता: देखो! वर्षा कहां चली गई!
देखो! वर्षा कहां चली गई! पानी को जब तडफेगें सब, ...
पलायन पर कविता: फिर क्यों पहाड पलायन है?
पलायन पर कविता: फिर क्यों पहाड पलायन है?
@कवि:सो.ला.सकलानी 'निशांत'
देखो, गांव कितने सुंदर हैं!
कुछ दिन रहकर देखो तो।
गांव पर्वत कैसे लगते हैं!
कुुछ दिन आकर देखो तो।
गांव हमे क्या कुछ देते हैं!
कुुछ खेती करके देखो तो।
गांव कभी क्यों अब रोते हैं!
दशा यहां की तुम देखो तो।
सुंदरता...
आंग्ल नववर्ष की मंगलमय शुभकामनाओं के साथ एक कविता
आंग्ल नववर्ष की मंगलमय शुभकामनाओं के साथ एक कविता, अरे वर्ष के हर्ष! नव वर्ष! तू क्या रंगत भर लाया।
कवि: सो.ला.सकलानी 'निशांत'
अरे वर्ष के हर्ष ! नव वर्ष ! तू क्या रंगत भर लाया !
भारतवर्ष की वीर भूमि पर, शौर्य गीत गाने आया।
नव वर्ष...
एक कहानी जो है हम सबकी, लगती है कि किसी विपन्न व्यक्ति की
एक कहानी जो हम सबकी है, लगती तो यह है कि किसी विपन्न व्यक्ति की है पर हम सभी विपन्न हैं, कम से कम ईश्वर आराधना में, अतः हमारी ही है।
एक धन सम्पन्न व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था।
पर कालचक्र के प्रभाव से...
हिंसक पशुओं का अंत हो जाए!
हिंसक पशुओं का अंत हो जाए! : कविता
कवि:सोमवारी लाल सकलानी 'निशांत'
विश्व में हिंसक पशुओं का अंत हो जाए बाघ चीते गुलदार लकडबघ्घे खो जांए।शिकारी दांत कुकर बिल्लों तक सीमित,केवल रोटी दूध खाने पीने के रह जांए,और शाकाहार जीवों का स्वभाव बन जाए।
निगलने वाले जीव...
हमने जिनको वोट दिया है —-
हमनें जिन्हें वोट दिया है-जिन्हें हमने वोट दिया है, वे भगवान बनेंगे।यदि भगवान नहीं बने तो, छोटे देव बनेंगे।राजनीति भी बेढंगी है! सतयुग द्वापर त्रेता।कलयुग में तो अमर है कोई, वह है अपना नेता।हमनें जिन्हें वोट दिया है, वे बद्रीश -केदार बनेंगे।राजा मंत्री बन...
जब आप वोट मांगने आओगे! देखिए जनाब..!
जब आप वोट मांगने आओगे! देखिए जनाब!
यह मेरे उत्तराखंड का विकास। नाम तो बड़ा अच्छा है उत्तराखंड, मानवीय करतूतों ने कर दिया है, सम्पूर्ण उत्तराखंड को खंड-बंड। देखिए जनाब!
इक्कीस सालों का लेखा-जोखा। क्या यही आपका असली विकास है? या पहाड़ के लोगों की तकदीर!...
कविता- समय से न्याय मिला ना !
कविता- समय से न्याय मिला ना!
गर्म तवे से बहू जलायी, सास-ननद ने की हैवानी,
मुंह के अंदर कपड़ा ठूंसा,
कैैसे कर भाई ने जान बचाई!
क्यों बेशर्मों को शर्म नहीं आयी।
पहाड़ की बेटी नदी डुबायी,
उत्पीड़न कर हत्या कर दी,
कुकर्मी कायर बुजदिल पापी ने,
शोषण कर क्यों बेटी मार...
पितृपक्ष पर विशेष: श्रद्धा से किए गए श्राद्ध में पितृगण साक्षात प्रकट होते हैं
क्या हुआ जब सीता माता ने दिया श्राद्ध भोज...?
भगवान श्रीकृष्ण से पक्षीराज गरुड़ ने पूछा:- हे प्रभो! पृथ्वी पर लोग अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध करते हैं। उनकी रुचि का भोजन ब्राह्मण आदि को कराते हैं। पर क्या पितृ लोक से पृथ्वी पर आकर...
लोकगायक नरेन्द्रसिंह नेगी का जनगीत ‘लोकतंत्र मा’ भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार
वर्तमान परिवेश में लोकगायक नरेन्द्रसिंह नेगी का जनगीत ‘लोकतंत्र मा’ भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार है। एक सच्चा लोक कवि वही है जो अपने समय की विद्रूपताओं पर खुलकर बोले और समय की विडंबनाओं को दर्ज़ करे। यह बहुत बड़ी बात है लोक गायक श्री...
कविता: वन माता को वृक्ष समर्पित !
खुश होकर जब पेड़ लगाया,
क्यों ना खुशी यह देगा !
आने वाले कुछ वर्षों में,
हरीतिमा से यह क्षेत्र सजेगा।
सरहद का साक्षी @कवि: सोमवारी लाल सकलानी 'निशांत'
पानी खूब बरख रहा है,
अब जल की भी कमी न होगी।
कुछ दिन इसकी देखभाल हो,
फिर धरती जड़ पकड़ेगी।
पावस के इस...
कविता: यह स्वच्छता क्रांति परिचायक हो!
प्लास्टिक पर बैन लगा, अवश्य बड़ा यह कार्य हुआ। कवि निशांत के झोले का, दसकों बाद सम्मान हुआ।।
मन दुनिया जन परेशान थे, प्लास्टिक का अंबार लगा। पालीथीन के जहरीले दंश से, जीव जग जलवायु मरा।।
सबसे गंदा विकास प्लास्टिक, पॉलिथीन तो संकट है। सुविधाओं के...